Election bonds were canceled and the Election Commission was suspended, what did the Supreme Court say in the decision?
चुनावी बॉन्ड स्कीम को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। इस स्कीम के जरिए राजनीतिक दलों को व्यक्तिगत और संस्थाओं से चंदा मिल रहा था। इस फैसले से सबसे बड़ा झटका भाजपा को लगा है, जिसे सबस अधिक चंदा मिल रहा था। अदालत का कहना है कि अप्रैल, 2019 से लागू इस योजना के तहत किस दल को कितना चंदा मिला है, यह जानकारी चुनाव आयोग को देनी होगी। फिर चुनाव आयोग को इस सूची को वेबसाइट पर डालना होगा। लोकसभा चुनाव से ठीक दो महीने पहले आए इस फैसले से केंद्र की सत्ता में बैठी भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों को करारा झटका लगा है।
1. यह इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम असंवैधानिक हैं। इसमें सूचना के अधिकार के नियम का उल्लंघन है। आम लोगो को यह तो पता ही होना चाहिए कि वे जिन दलों को वोट दे रहे हैं, उन्हें किससे कितना चंदा मिल रहा है। उनकी फंडिंग की व्यवस्था क्या है।
2. अदालत ने कहा कि यह स्कीम काले धन की समस्या का समाधान नहीं करती। इसमें बॉन्ड खरीदने वाले के नाम ही उजागर नहीं होते। यह आम लोगों को पता होना चाहिए। ऐसा न होना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है।
3. कोर्ट ने चुनाव आयोग की भी सुनवाई के दौरान खिंचाई की। अदालत ने कहा कि आप चुनावी प्रक्रिया पूरी कराने वाली एजेंसी हैं। यदि आपको ही पता नहीं होगा कि चुनाव में राजनीतिक दलों को कहां से कितना पैसा मिला तो फिर कैसे पारदर्शिता आएगी। यह कहते हुए कोर्ट ने बैंक को आदेश दिया है कि वह इलेक्शन कमिशन को बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी दे। फिर आयोग उस जानकारी को अपनी वेबसाइट पर शेयर करे।
4. अदालत ने हालांकि यह भी कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग की किसी और व्यवस्था पर विचार करना होगा। ऐसी योजना के बारे में सोचना होगा, जिससे पारदर्शिता आए और दलों को फंडिंग भी मिल सके।
5. कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को पूरी तरह असंवैधानिक करार दिया। इसके साथ ही कंपनीज ऐक्ट और जनप्रतिनिधित्व कानून में किए गए संशोधन भी अब रद्द हो गए हैं।