विधानसभा की बागेश्वर सीट के उपचुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ होने के साथ ही राजनीतिक सरगर्मी भी तेज हो चुकी है। एक-दूसरे को पछाड़ने की होड़ में तमाम दांवपेच अपनाए जा रहे हैं तो वाकयुद्ध भी कम नहीं है। किसके सिर जीत का सेहरा बंधता है और किसे पराजय मिलेगी, इसे लेकर आने वाले दिनों में तस्वीर साफ हो जाएगी। हालांकि, राज्य गठन के बाद से अब तक का इतिहास कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है। विधानसभा की रिक्त सीटों के लिए हुए उपचुनावों में जीत की चाबी हमेशा ही सत्ताधारी दलों के पास रही है।
विधानसभा चुनाव के इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो बागेश्वर ऐसी 15 वीं सीट है, जिसके लिए वर्तमान में उपचुनाव हो रहा है। कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास के निधन के कारण यह सीट रिक्त हुई है। इस सीट के उपचुनाव का कार्यक्रम निर्धारित होने के साथ ही सत्ताधारी भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने बिसात बिछानी शुरू कर दी है, लेकिन उपचुनाव के इतिहास को देखें तो हमेशा ही सत्ताधारी दलों के प्रत्याशी जीत दर्ज करते आए हैं।
वर्ष 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्तारूढ़ हुई और मुख्यमंत्री बने नारायण दत्त तिवारी। वह विधानसभा के सदस्य नहीं थे तो रामनगर के विधायक योगंबर सिंह रावत ने उनके लिए सीट खाली की। तिवारी ने जीत दर्ज की। विधानसभा की कोटद्वार सीट का चुनाव निरस्त होने के बाद वर्ष 2005 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह नेगी ने फिर से विजय हासिल की।
दूसरी विधानसभा के चुनाव में जनता ने भाजपा को सत्ता सौंपी। तब मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के लिए धुमाकोट सीट से तत्कालीन कांग्रेस विधायक रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल टीपीएस रावत ने सीट खाली की थी।
वर्ष 2009 में कपकोट से विधायक भगत सिंह कोश्यारी के राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने पर इस सीट के उपचुनाव में भाजपा के शेर सिंह गड़िया ने जीत हासिल की। वर्ष 2009 में ही विकासनगर सीट के उपचुनाव में भाजपा के कुलदीप कुमार जीते थे।
वर्ष 2012 से 2017 तक तीसरी विधानसभा के कार्यकाल में सर्वाधिक पांच सीटों पर उपचुनाव हुए। तब कांग्रेस की सरकार बनी और वर्ष 2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के लिए सितारगंज से सीट छोड़ी भाजपा के किरण मंडल ने। उपचुनाव में बहुगुणा विजयी रहे।
वर्ष 2014 में डोईवाला से विधायक रमेश पोखरियाल निशंक और सोमेश्वर से विधायक अजय टम्टा के लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद इन सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने ही बाजी मारी। तब डोईवाला से हीरा सिंह बिष्ट व सोमेश्वर से रेखा आर्या विजयी रहे थे।
इसके साथ ही सरकार में नेतृत्व परिवर्तन होने पर मुख्यमंत्री हरीश रावत के लिए धारचूला से पार्टी विधायक हरीश धामी ने अपनी सीट छोड़ी थी। वर्ष 2015 में भगवानपुर सीट के उपचुनाव में भी कांग्रेस की ममता राकेश जीती थीं। यह सीट तत्कालीन मंत्री सुरेंद्र राकेश के निधन के कारण रिक्त हुई थी।
चौथी विधानसभा के चुनाव में जनता ने भाजपा को प्रचंड बहुमत सौंपा। तब वर्ष 2018 में थराली सीट के उपचुनाव में भाजपा की मुन्नी देवी शाह, 2019 में पिथौरागढ़ सीट पर चंद्रा पंत और वर्ष 2021 में सल्ट सीट के उपचुनाव में महेश सिंह जीना विजयी रहे थे।
पिछले वर्ष हुए पांचवीं विधानसभा के चुनाव में जनता ने भाजपा के पास सत्ता बरकरार रखी, लेकिन तब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वयं चुनाव हार गए थे। पिछले वर्ष मुख्यमंत्री के लिए चंपावत के विधायक कैलाश चंद गहतोड़ी ने अपनी सीट छोड़ी। इस उपचुनाव में मुख्यमंत्री धामी ने रिकार्ड मतों से जीत हासिल की।