उत्तराखंड में फिलहाल भारी वर्षा का क्रम थमा हुआ है। इससे प्रदेशवासी राहत महसूस कर रहे हैं। लेकिन, अचानक मानसून के कमजोर पड़ने से मौसम विज्ञानी चिंता में हैं। वजह यह कि अगस्त के अंतिम सप्ताह में नहीं के बराबर वर्षा हुई।
मौसम विभाग के अनुसार, सितंबर में भी मानसून का यही रुख रह सकता है। ऐसे में मानसून के समय से पहले विदा होने से इन्कार नहीं किया जा सकता। साथ ही मानसून की ओवरआल वर्षा भी सामान्य से कम रह सकती है। हालांकि, अब तक यह सामान्य रही है।
अगस्त के अंतिम सप्ताह में मानसून कमजोर पड़ने लगा
वर्ष 2002 के बाद यह पहला मौका है, जब मानसून अगस्त में ही कमजोर पड़ गया। इस बार उत्तराखंड में मानसून ने 23 जून को दस्तक दी और जुलाई की शुरुआत से ही भारी वर्षा शुरू हो गई। यह क्रम अगस्त में भी शुरुआती तीन सप्ताह तक जारी रहा।
अब तक की बात करें तो मानसून सीजन में सामान्य से नौ प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है। लेकिन, अगस्त में सामान्य से चार प्रतिशत कम वर्षा दर्ज की गई। ऐसा अगस्त के अंतिम सप्ताह में मानसून के कमजोर पड़ने से हुआ।
पिछले पांच दिन में प्रदेश में सामान्य से 70 प्रतिशत कम वर्षा हुई है। मौसम विज्ञानी इसे अलनीनो का प्रभाव बता रहे हैं। ठीक यही स्थिति वर्ष 2002 में भी बनी थी। तब अगस्त के दूसरे पखवाड़े की शुरुआत के साथ ही वर्षा का क्रम थमने लगा था। उस वर्ष मानसून सीजन में सामान्य से 28 प्रतिशत कम वर्षा हुई थी और मानसून सितंबर मध्य में ही विदा हो गया। सितंबर में भी वर्षा सामान्य से कम रहने के आसार हैं।
आमतौर पर उत्तराखंड में मानसून सीजन एक जून से 30 सितंबर तक माना जाता है। सितंबर अंत में मानसून की विदाई होती है। बीते वर्ष तो मानसून आठ अक्टूबर को विदा हुआ था। इस वर्ष अभी मानसून की विदाई को लेकर कोई सटीक अनुमान नहीं है, लेकिन इसके सितंबर के तीसरे सप्ताह तक विदा होने की संभावना जताई जा रही है। मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह के अनुसार, सितंबर में भी वर्षा सामान्य से कम रहने के आसार हैं।
सूखे के लिए जिम्मेदार होता है अलनीनो अलनीनो
सूखे के लिए भी जिम्मेदार होता है अलनीनो अलनीनो प्रभाव मौसम संबंधी विशेष परिस्थिति है, जो मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर में समुद्र का तापमान सामान्य से अधिक होने पर बनती है। इसकी वजह से तापमान बढ़ जाता है और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र से गर्म सतह वाला पानी भूमध्य रेखा के साथ पूर्व की ओर बढ़ने लगता है।
इससे भारत के मौसम पर असर पड़ता है। ऐसी स्थिति में भयानक गर्मी का सामना करना पड़ता है और सूखे के हालात बनने लगते हैं।