Do companies really give 80-90 percent discount or is there some big trick hidden from us?
नई दिल्ली. त्योहारी सीजन आते ही हर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म आपको बड़े-बड़े डिस्काउंट ऑफर करने लगता है. ये छूट 80-90 परसेंट तक जा सकती हैं. फ्लिपकार्ट, अमेजन व मिंत्रा समेत कई ऑनलाइन बिक्री प्लेटफॉर्म्स पर आपको ये छूट देखने को मिल जाएगाी. सिर्फ ऑनलाइन ही नहीं ऑफलाइन मोड में भी आपको छूट ऑफर की जाती है. ऐसे में ये सवाल कई लोगों के मन में आता होगा कि आखिर ये होता कैसे है. क्या कंपनियां खुद को घाटे में डालकर ग्राहकों को फायदा दे रही होती हैं? नहीं ऐसा बिलकुल नहीं होता.
अगर उन्हें त्वरित घाटा हो भी रहा हो तब भी आने वाले समय में वह तगड़े मुनाफे के लिए ये सब करती हैं. कुछ तरीके हैं जिनसे ऐसा भ्रम पैदा किया जाताहै कि आपको सामान भारी डिस्काउंट पर मिल रहा है लेकिन ऐसा सही में नहीं होता क्योंकि कंपनियां वहां अपना मुनाफा निकालकर ही दाम घटाती हैं या दाम घटाती हुई दिखती हैं.
अगर उन्हें त्वरित घाटा हो भी रहा हो तब भी आने वाले समय में वह तगड़े मुनाफे के लिए ये सब करती हैं. कुछ तरीके हैं जिनसे ऐसा भ्रम पैदा किया जाताहै कि आपको सामान भारी डिस्काउंट पर मिल रहा है लेकिन ऐसा सही में नहीं होता क्योंकि कंपनियां वहां अपना मुनाफा निकालकर ही दाम घटाती हैं या दाम घटाती हुई दिखती हैं.
ज्यादा सामान बेचकर मुनाफा- मुनाफा कमाने के दो तरीके हैं. पहला तो ये कि आप कम सामान महंगा बेच दें. दूसरा कि आप सामान को थोड़ा स्ता कर के ज्यादा बेच दें. यहां दूसरी रणनीति इस्तेमाल होती है. दूसरे तरीके में रेट कम करके आप बहुत बड़ी संख्या में ग्राहकों को अपनी ओर खींच सकते हैं. चूंकि, त्योहारों में ज्यादा लोग खरीदारी करते हैं इसलिए ऐसा करना मुमकिन भी हो जाता है. कम दाम पर बेचने के बाद भी अंत में इनका मुनाफा पूरा होता है. बल्क में सामान बेचने से न सिर्फ कंपनी को मुनाफा होता है, बल्कि वेंडर का भी मुनाफा बढ़ जाता है.
कंपनी और प्लेटफॉर्म की सांठ-गांठ- ग्राहकों को डिस्काउंट देने के लिए प्लेटफॉर्म और वेंडर दोनों सांठ-गांठ करते हैं. जहां प्लेटफॉर्म्स अपने कमीशन को कम कर देते हैं, तो वहीं वेंडर के सामान को बेचने के लिए डिस्काउंट ऑफर करते हैं हालांकि, यह डिस्काउंट सीमित संख्या में होता है. लेकिन दोनों की ओर से छूट मिलकर यह बड़ी हो जाती है
सामान को ऊंचे दाम पर ही उतारना- कई बार कंपनियां दाम करने का भ्रम भी पैदा करती हैं. वह सामान को ऊंचे दामों पर ही बाजार में उतारती हैं और फिर उन पर छूट का दावा कर देती हैं. यह एक तरह का छल होता है लेकिन उस सामान की एमआरपी ही ऊंची रखी गई होती है इसलिए लोग इस बात को पकड़ नहीं पाते और उन्हें लगता है कि उन्हें छूट दी जा रही है. ये सारे फैक्टर मिलकर किसी सामान को 80-90 फीसदी तक डिस्काउंट वाला बना देते हैं.
अगर उन्हें त्वरित घाटा हो भी रहा हो तब भी आने वाले समय में वह तगड़े मुनाफे के लिए ये सब करती हैं. कुछ तरीके हैं जिनसे ऐसा भ्रम पैदा किया जाताहै कि आपको सामान भारी डिस्काउंट पर मिल रहा है लेकिन ऐसा सही में नहीं होता क्योंकि कंपनियां वहां अपना मुनाफा निकालकर ही दाम घटाती हैं या दाम घटाती हुई दिखती हैं.